नात शरीफ
क़बर से होती हुयी खुल्द की कियारी निकले
शहरे तैबा में अगर रूह हमारी निकले
आए मैदान में जब ग़ैरते ईमान के साथ
तीन सो तेरह हजा़रों पे भी भारी निकले
जाके पैदल में अगर देखूँ नबी का रोजा़
एक पल में ही थकन सारी की सारी निकले
कोयी नज़रें न उठाए सरे महशर उस दम
जिस घडी़ फातिमा ज़हेरा की सवारी निकले
इस तरह निकले मेरी जान मदीने में हसन
जैसे महलों से कोयी राज कुमारी निकले
نعت شریف
मो० उस्मान आशिकी़
Lakhimpur kheri Uttar pardesh india
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Naate-paak